ढूंढ पूजन क्या है क्यों किया जाता है कब किया जाता है
ढूंढ हिन्दू धर्म को मानने वालो की एक
सामाजिक रस्म है यह बच्चे के जन्म से जुडी हुई है जब किसी हिन्दू परिवार में बच्चे
का जन्म होता है तो बच्चे के जन्म के बाद तुरंत बाद जो भी पहली होली आती है तब
ढूंढ पूजन की रस्म की जाती है यह होली से पूर्व आने वाली ग्यारस या होलिका दहन
वाले दिन की जाती है अब इस रस्म में क्या
होता है क्यों की जाती है जानते है ।
इस रस्म में नवजात शिशु की माँ
यानी बच्चे की माता चुंदरी पीला ओढ़ कर बैठती है यह पीला या बेस बच्चे के ननिहाल
पक्ष से भेजा जाता है पूजा के लिए सामग्री चावल और जावर के फूलिए सूखे सिंघाड़े
पतासे और बूंदी के लड्डू ये सारी सामग्री बच्चे के ननिहाल से आती है ननिहाल के
अलावा कई स्थानों पर यह सामग्री बच्चे की बुआ के घर से भी लायी जाती है इसके अलावा
बच्चे के लिए सफ़ेद कपडे भेजे जाते है ढूंढ पूजन के दौरान बच्चे को यही कपडे पहनाये
जाते है ।
ढूंढ पूजा वाले दिन पूजा
की तैयारी की जाती है
ढूँढ पूजा की विधि
एक बजोट पर सफ़ेद कपडा या लाल कपडा
बिछा कर उस पर स्वस्तिक का चिन्ह बनाया जाता है फिर उस बजोट पर तेरह स्थानों पर
थोड़े थोड़े फूलिए पतासे सिंघाड़े और एक एक लड्डू रखे जाते है और उन तेरह की स्थानों
पर श्रद्धा के अनुसार रूपये रखे जाते है ।
एक थाली में रोली, कुमकुम, चावल, हल्दी,
मौली, जल से भरा लोटा और अन्य पूजा सामग्री रखी जाती है ।
फिर बच्चे की
माता एक अन्य चौकी या बाजोट पर अपने पीहर या ननद के घर से आया बेस या पीले की चुंदरी
पहन कर बच्चे को गोद में लेकर पूजा के लिए बैठती है
इस रस्म की
सबसे ख़ास बात यह है की बच्चे के जन्म से लेकर घर परिवार में जब भी कोई शुभ कार्य
पूजा आदि की जाती है तब बच्चे के तिलक लगाया जाता है वो सीधा नहीं लगा कर आडा तिलक लगाया जाता है और ढूंढ पूजन की रस्म के
बाद से बच्चे के सीधा तिलक लगाना शुरू करते है
तो बच्चे की
माता एक अन्य चौकी या बाजोट पर अपने पीहर या ननद के घर से आया बेस या पीले की चुंदरी
पहन कर बच्चे को गोद में लेकर पूजा के लिए बैठ जाती है
पूजा के समय
ढोल बजाया जाता है आस पड़ोस के लोगो और रिश्तेदारों की उपस्थिति में ढोल धमाके के
साथ ढूढ़ पूजन शुरू किया जाता है
बजोट पर तेरह
स्थानों पर रखी गयी सामग्री पर हल्दी कुमकुम के छांटे लगाये जाते है और कुमकुम
रोली से बच्चे के सीधा तिलक टिका लगाया जाता है बच्चे के सफ़ेद कपड़ो पर हल्दी कुमकुम
के छांटे लगाये जाते है फिर बच्चे की माँ खुद के तिलक लगाती है यह पूजा बच्चे की
माँ के द्वारा की जाती है
फिर बच्चे की
माँ उस बजोट के यानी की पाते के धोक देकर पाटे पर रखी हुई सामग्री अपनी सास को
देती है
उपस्थिति
महिलाओ के द्वारा ढूंढ के पारम्परिक गीत गाये जाते है
सास के द्वारा
यह सामग्री को अन्य सामग्री में मिला कर
उपस्थित महिलाओं में बाटा जाता है और होली की शुभकामनाओ के साथ सभी को विदा
किया जाता है
लोक मान्यता है की जब तक बच्चे का ढूंढ़ पूजन नहीं हो जाता है तब तक बच्चे को सफेद रंग के कपड़े नहीं पहनाए जाते और बच्चे की सर पर सीधा तिलक भी नहीं लगाया जाता ढूंढ पूजन पर ही सबसे पहले बच्चे को सफेद रंग के नए कपड़े पहनाए जाते हैं और सीधा तिलक किया जाता है
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