ये कुप्रथायें प्रचलित थी भारत में आज भी चलन में है कई प्रथाएं

 ये कुप्रथायें प्रचलित थी भारत में आज भी चलन में है कई प्रथाएं


एक समय था जब हमारे देश भारत को कई विदेशी आक्रमणों को सहना पड़ा था कई वर्षो तक देश मुगलों का और फिर अंग्रेजो का गुलाम रहा देश की ऐसी परिस्थतियो में ज्यादातर लोग बेहद गरीब और अशिक्षित थे उन्हें अपने अच्छे और बुरे की समझे नहीं थी बस कुछ लोगो द्वारा बताये गए रीती रिवाज लोगो ने अपनाने शुरू कर दिए धीरे धीरे यह काम प्रथाए बन गयी कुछ पीढ़ी डर पीढ़ी लोग इन प्रथाओ का अनुसरण करने लगे कुछ प्रथाए अच्छी थी तो कुछ ख़राब जिस आप कुप्रथाए भी कह सकते है तो हमारे देश हमारे समाज में कुप्रथाए फैलने लगी समय बदलने के बाद भी लोग नहीं बदले और उन कुप्रथाओ को ढोने लगे जब पानी सर तक आ गया तो इन कुप्रथाओ को बंद करने के लिए कुछ लोगो ने आन्दोलन लिए प्रयास किये सरकार ने इन कुप्रथाओ को बंद करने के लिए कठोर कानून बनाये समय के साथ साथ कुछ कुप्रथाए अब बिलकुल समाप्त हो गयी है और कुछ अभी भी चोरी छुपे चल रही है तो कुछ कुप्रथाए खुल्म्खुला अभी भी चलन है में तो आज इस लेख में हम आपको समाज की कुछ कुप्रथाओ के बारे में जानकारी शेयर करने जा रहे है यह संकलन हमने इन्टरनेट की मदद से पुस्तको की मदद से और लोगो के मुह से सुनकर तैयार किया है इसमें कुछ त्रुटी भी हो सकती है इस विडियो का मकसद किसी भी तरह से किसी भी धर्म जाती और समाज को टार्गेट करने का या आहत करने नहीं है और ना ही आप इसे इस रूप में ले

तो आइये शुरू करते है

डावरिया प्रथा

डावरिया प्रथा राजा-महाराजाओं के समय में और जागीरदारों प्रथा के समय प्रचलित थी इस प्रथा में जब राजा-महाराजा या जागीरदार की पुत्री के विवाह करते थे तो दहेज के साथ कुछ कुँवारी कन्याएं भी दहेज़ में दिया करते थे ये लड़कियां गुलामो की तरह उम्र भर उसकी सेवा में रहा करती थी और इन्हें ही 'डावरिया' कहा जाता था यह प्रथा बहुत ही पुरानी कुप्रथाओ में से एक थी  खासकर यह प्रथा राजस्थान में बहुत ज्यादा प्रचलित थी लेकिन वर्तमान में यह  प्रथा पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है ।

साठा प्रथा

साठा प्रथा भी राजस्थान की प्रचलित कुप्रथाओ में से एक है इस प्रथा में  दो परिवार की महिलाओ को समाज के बन्धनों में जकड़ा जात था कई बार इस प्रथा से परेशान होकर काफी महिलाए आत्म हत्या भी कर लेती थी साठा प्रथा मे दो परिवार मे सजातिय विवाह करना अनिवार्य होता था यानि की जिस घर में बेटी का विवाह किया जाता था उसी घर से एक लड़की को भी विवाह करके उस घर में लाना होता अब इसे आप विवाह न कह कर एक प्रकार का सौदा या साठा भी कह सकते है  साठा प्रथा मे अपनी यदि बेटी को ससुराल मे तंग किया जाता है वैसा का वैसा उनकी बेटी को भी उसी तरह से तंग किया जाता है और इसके नतीजे काफी खतरनाक होते थे यदि किसी कारण वश दोनों में से किसी भी एक लड़की तलाक हो जाता तो ऐसी स्थिति में दुसरी को भी अपने पीहर जाना होता था भले ही उसके पेट में दो तीन महिने के गर्भ हो उसे अपने पीहर जाना होता था और कई बार तो लड़की को अपने माँ बाप के साथ मिलकर अपने पेट में पल रहे बच्चे की हत्या तक करनी होती थी ऐसी स्थिति में दुखी और हताश होकर पिहर मे बैठी बेटी को अपने पति या बच्चे के वियोग मे आत्म हत्या तक लेती थी यह बहुत ही दुखद स्थति है

नाता प्रथा

इस प्रथा में विवाहित पुरूष या विवाहित महिला यदि किसी दूसरे पुरूष या किसी दूसरी महिला के साथ अपनी मर्जी से रहना चाहते है, तो वह एक दूसरे से तलाक ले सकते है जिसके लिए उन्हें  एक निश्चित राशि अदा करना होता है वैसे इस प्रथा को बनाने के मूल कारण समाज की विधवा और परित्‍यक्‍ता महिलाओ को सामाजिक जीवन जीने के लिए सपोर्ट करना था कई समाज में यह प्रथा आज लागु है  इस प्रथा में पॉच गांव के पंचों द्वारा पहली शादी के दौरान जन्‍मे बच्‍चे या फिर अन्‍य मुद्दों पर चर्चा कर निपटारा कर दिया जाता है ताकि बाद में दोनों के जीवन में इन बातों से कोई मतभेद न हों यह प्रथा माली समाज में अभी भी जारी है खासकर गुर्जरों में तो यह परंपरा काफी लोकप्रिय है इस प्रथा की वजह से वहां की महिलाओ और पुरूषों को तलाक के कानूनी झंझटों से मुक्ति मिल जाती है और उनको अपनी पसंद का जीवन साथी भी मिल जाता है।

 हलाला प्रथा

हलाला प्रथा मुस्लिम समाज की प्रथा है यह शादी की एक इस्लामी रस्म है इस प्रथा के अनुसार जब कोई पुरुष किसी महिला को तलाक देता है और किसी परिस्थिति के कारण उस महिला को फिर से उसी पुरुष से विवाह करना पड़ता है तब उस पर हलाला प्रथा के नियमों लागु हो जाते है शरीयत के अनुसार, एक महिला को उसी व्यक्ति से दोबारा शादी करने से पहले किसी अन्य पुरुष यानी की दूसरे पुरुष से शादी करनी पडती है और फिर से जब यह दूसरा पति महिला को तलाक देता है तभी वह महिला अपने पहले पति से शादी कर सकती है अब यह दूसरी शादी एक दिन के लिए भी हो सकती है  लेकिन इस प्रथा के अनुसार उस महिला को दूसरी शादी वाले  पुरुष से शारीरिक सम्बन्ध बनाने जरुरी होते है बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, हलाला की यह परंपरा भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के अलावा पूरी दुनिया में करी आम है और अभी भी प्रचलित है।

डाकन प्रथा

यह प्रथा भील और मीणा जातियों में काफी प्रचलित थी इस प्रथा में स्त्रियों पर डाकन होने का आरोप लगाया जाता था और फिर उन्हे मार दिया जाता था यह कुप्रथा बहुत अधिक व्याप्त थी इस प्रथा को 1853 में मेवाड़ भील कोर के कमान्डेन्ट जे.सी. ब्रुक ने खैरवाड़ा गैर कानूनी घोषित किया था इस प्रथा के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रो में औरतों पर डाकन यानी अपनी तांत्रिक शक्तियों से नन्हें शिशुओं को मारने वाली मान लिया जाता था और अंधविश्वास के चलते उस पर तरह तरह के आरोप लगाकर उसे  निर्दयतापूर्ण मार दिया जाता था। इस प्रथा के कारण सैकड़ों स्त्रियों को मार दिया गया अब यह प्रथा पूरी तरह से समाप्त हो गयी है

हरिबोल प्रथा

एक समय था जब भारत मे बहुत अधिक अंधविश्वास और कुरुतियाँ फैली हुई थी  और इन कुप्रथाओ के कारण कई लोग बेमौत मारे जाते थे एक कुप्रथा थी हरिबोल प्रथा  यह प्रथा खासकर बंगाल में सबसे जायदा प्रचलित थी इस प्रथा में जब कोई व्यक्ति बुड्ढा हो जाता मरणासन्न हो जाता था तो उसे किसी नदी के तट पर ले जाकर डुबकी लगवायी जाती थी डुबकी तब तक लगायी जाती जब तक वो मर ना जाए और यदि डुबकी लगने के बाद भी वो ना मरे तो फिर उसे वही नदी किनारे छोड़कर चले आते थे  और ऐसे बुजुर्ग व्यक्ति को तड़पकर तद्फ्कर अपने प्राण त्याग करने होते थे 1831 में अंग्रेजी शासको के द्वारा इस प्रथा को पूरी तरह से बंद करवा दिया गया था

 छौपदी प्रथा 

मासिक धर्म महिला के लिए एक प्राकृतिक क्रिया है जो किसी भी महिला के हाथ में नहीं है दूनिया के कई देशों में मासिक धर्म यानी पीरियड को आज भी बहुत अधिक अपवित्र माना जाता है ऐसे में एक कुप्रथा थी की जब किसी महिला को मासिक धर्म आता था तो उस महिला को पुरे परिवार से अलग रखा जाता है कई जगहों पर तो ऐसी महिला को घर से बहार निकाल दिया जाता था इसी प्रथा को छौपदी प्रथा कहा जाता है यह प्रथा आज भी कई देशो में प्रचलित है खासकर भारत के ग्रामीण इलाको में नेपाल पाकिस्तान आदि देशो के कई क्षेत्रो में यह प्रथा आज भी जिन्दा है

 सागड़ी प्रथा

सागड़ी प्रथा एक बंधुआ मजदूर प्रथा थी इस प्रथा में क्या होता था की जब कोई सेठ कोई  साहूकार किसी गरीब मजदूर को उधार पैसे देता तो वह उधार दिए गए धन के  बदले कर्जदार व्यक्ति को या फिर उसके घर परिवार के किसी सदस्य को अपने यहाँ नौकर के रूप में रखता था जो उसके यहाँ तब तक बंधक रह कर काम करता था जब तक की कर्ज की पाई पाई न चुकता हो जाए यह कुप्रथा 1976 में समाप्त की गयी बंधुआ मजदूरी प्रणाली को 25 अक्टूबर 1985 से सम्पूर्ण देश से ख़त्म कर दिया गुलामी की सी प्रथा को समाप्त करने के लिए अब कठोर कानून बना दिया गया है अब किसी को गुलाम बना कर काम करना एक दंडनीय अपराध है ।

देवदासी प्रथा

देवदासी यानी देवताओ की दासी देवदासी बनने का मतलब होता था भगवान या देव की शरण में चला जाना ऐसी स्त्री को जो देवदासी बनना स्वीकार करती थी उन्हें भगवान की पत्नी समझा जाता था और एक बार देवदासी बनने के बाद ऐसी स्त्री कभी भी किसी व्यक्ति से शादी नहीं कर सकती थीं। पहले देवदासियां मंदिर में पूजा-पाठ और उसकी देखरेख के लिए होती थीं और वे नाचने गाने जैसी 64 कलाएं सीखती थीं  लेकिन धीरे धीरे यह कुप्रथा में बदल गयी और कुछ स्वार्थी कामुक लोगो ने इसका अर्थ ही बदल कर रख दिया ।

घूघट प्रथा

आदि काल में कभी भी घूघट प्रथा नहीं थी किसी भी काल या युग में अपने इस प्रथा के बारे में सुना पढ़ा नहीं होगा घुंघट प्रथा का चलन हमारे हिंदुस्तान मे जब बाहरी

आक्रमण कारी आये तो वो भारतीय स्त्रियों पर अपनी बुरी नजर रखते थे बाहरी आक्रमकों ने महिलाओं को अपना शिकार बनाना शरू कर दिया और इसी कारण से मज़बूरी वश लोगों ने घर की महिलाओं को घूँघट मे रखना शुरू कर दिया यह प्रथा शहरो में तो अब देखने को नहीं मिलती है लेकिन गावो में यह प्रथा अभी भी जिन्दा है

बाल विवाह की प्रथा

इस प्रथा के अनुसार कुछ विशेष समुदाय या जाति समाज में बच्चों को बहुत छोटी सी उम्र में ही विवाह के बंधना में बाँध दिया जाता है इस प्रकार के बाल विवाह बच्‍चों को यदि बड़े होने पर स्वीकार नहीं होता है तो विवाह के बाद हिंसा, शोषण और यौन शोषण जैसे खतरो को बढ़ता है बाल विवाह से लड़कियों और लड़कों दोनों की मानसिकता पर भी भारी असर डालता होता है खासकर इसका प्रभाव लड़कियों पर ज्यादा होता है किसी लड़की या लड़के की शादी यदि 18 वर्ष से कम आयु में कर दी जाती है यह बाल विवाह कहलाता है। बच्चो का इस तरह से बाल विवाह उनके  बचपन को ही पूरी तरह से खत्‍म कर देता है  बाल विवाह बच्‍चों की शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य पर भी बुरा प्रभाव डालता है और इस प्रकार बाल विवाह का सीधा ना केवल लड़कियों पर, बल्कि उनके परिवार और समुदाय पर भी पड़ता है ।

 : Narendra Agarwal 

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