ब्रह्मा मंदिर पुष्कर की खासियत पुष्कर के मंदिर की कहानी Story of Brhama Mandir Pushkar

ब्रह्मा मंदिर पुष्कर की खासियत पुष्कर के मंदिर की क्या कथा

Story of Brhama Mandir Pushkar

अठारह पुराणों में प्राचीनतम पुराण ब्रह्मवैवर्त पुराण को माना गया है सभी पुराणों में ब्रह्मवैवर्त पुराण वेदमार्ग का दसवाँ पुराण माना जाता है इस पुराण में जीव की उत्पत्ति के कारण और ब्रह्माजी द्वारा समस्त भू-मंडल, जल-मंडल और वायु-मंडल में विचरण करने वाले जीवों के जन्म और उनके पालन पोषण का सविस्तार वर्णन किया गया है इस पुराण के अनुसार इस विश्व में असंख्य ब्रह्माण्ड विद्यमान हैं और प्रत्येक ब्रह्माण्ड के अपने-अपने विष्णु, ब्रह्मा और महेश हैं। इन सभी ब्रह्माण्डों से भी ऊपर स्थित गोलोक है जहाँ भगवान श्रीकृष्ण निवास करते हैं।


पूरी दुनिया में ब्रह्मा जी का एक मात्र मंदिर राजस्थान के पुष्कर में स्थित है बहुत कम लोग जानते है की पुष्कर का अर्थ क्या है पुष्कर का अर्थ है एक ऐसा सरोवर या तालाब जिसका निर्माण फूलों से किया गया है तो धार्मिक नगरी पुष्कर शहर बहुत ही प्राचीन पौराणिक और धार्मिक माना जाता है आपको पुष्कर नगरी का उल्लेख कई पुराणों में भी मिल जाएगा पुष्कर के सम्बन्ध में यह भी कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार की धार्मिक यात्रा करके आता है खासकर चारों धामों की यात्रा करके आता है और वह व्यक्ति पुष्कर में स्नान न करे तो उसे उस धार्मिक यात्रा का कोई फल नहीं मिलता है ।


पुष्कर की सबसे बड़ी खासियत है ब्रह्मा मंदिर जगत पिता त्रिदेवो में एक त्रिदेव  ब्रह्मा, विष्णु और महेश, महेश यानी भगवान शिव आपको अपने शहर गाँव में भगवान विष्णु और शिव के तो मंदिर देखने को आसानी से मिल जायेंगे लेकिन बह्मा जी का मंदिर नहीं मिलेगा । तो पूरे भारत में केवल यही ब्रह्मा का सबसे प्राचीन मन्दिर है इस मन्दिर का निर्माण 14 वीं शताब्दी का माना जाता है ब्रह्मा मन्दिर पुष्कर का मुख्य आकर्षण है पूरी दुनिया से लोग यहाँ ब्रह्मा जी के दर्शनों के लिए आते है यहाँ बह्मा जी की चार मुख वाली चतुर्मुखी प्रतिमा और देवी गायत्री के साथ साथ सावित्री जी की प्रतिमाये भी देखने को मिलेगी यह दोनों ब्रह्मा जी की पत्निया है इस मंदिर की देख रेख का कार्य राजस्थान सरकार के देवस्थान विभाग के द्वारा किया जा रहा है ।

ब्रह्मा मंदिर पुष्कर में ही होने की कहानी


भगवान ब्रह्मा के पूरी विश्व में एकमात्र मंदिर होने के पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है ।

 इस मंदिर से जुडी एक पौराणिक यह की एक बार की बात है जगतपिता ब्रह्मा जी को एक महान यज्ञ करना था और यज्ञ उन्हें धरती पर यानी की मृत्यु लोक पर करना था मगर समस्या यह थी की करे तो कहाँ करे इसके लिए उन्हें एक बेहद पवित्र स्थान की तलाश थी तो ब्रह्मा जी अपने वाहन हंस पर सवार हुए और उस पवित्र स्थान की तलाश में निकाल पड़े वो धरती पर भ्रमण कर रहे थे अचानक उनके हाथ से कमल का फूल गिर गया वो कमल का फूल के धरती जा गिरा । जिस जगह वो कमल का फुल धरती पर गिरा वहा एक झरना बन गया और उस झरने से तीन सरोवर बन गए । यह स्थान पुष्कर था जिन स्थानों पर वो तीन झरने बने उन्हें ब्रह्म पुष्कर, विष्णु पुष्कर और शिव पुष्कर के नाम से जाना गया इन सरोवरों को देखकर ब्रह्मा जी ने इसी स्थान पर अपना यज्ञ पूर्ण करने का निर्णय लिया।


 तो ब्रह्मा जी वही पर उतर गए और यज्ञ की तयारी शुरू कर दी अब जैसा की आप सभी जानते ही होंगे किसी भी विवाहित पुरुष के लिए यज्ञ में उसकी पत्नी का भी बैठना जरुरी होता है तो यज्ञ में ब्रह्मा जी के साथ उनकी पत्नी सावित्री देवी का होना भी जरुरी था।


 लेकिन उस समय तो भगवान ब्रह्मा की पत्नी सावित्री उनके साथ थी नहीं ब्रह्मा जी ने शुभ मुहुर्त देखा तो पाया की शुभ मुहूर्त तो निकला जा रहा है तभी ब्रह्मा जी ने देखा एक सुंदर स्त्री वहां से गुजर रही थी ब्रह्मा जी ने सोचा क्यों ना इसी से विवाह करके यज्ञ पूर्ण कर लिया जाए तो सृष्टि के कल्याण के लिए ब्रह्मा जी ने उसी समय वहां मौजूद एक सुदंर स्त्री के विवाह कर लिया और उसे अपने साथ यज्ञ में बैठा कर यज्ञ संपन्न कर लिया इधर जब देवी सावित्री को यह बात पता चली की ब्रह्मा जी ने उनका अधिकार किसी और स्त्री को दे दिया वो वो बेहद क्रोधित हो गयी और क्रोधित अवस्था में उन्होंने  भगवान ब्रह्मा को श्राप दे दिया की हे ब्रहम देव आपने इस सम्पूर्ण सृष्टि की रचना की है मगर मेरा श्राप है की जिस सृष्टि की रचना आपने की है उस पूरी सृष्टी में ही आपकी कहीं भी पूजा नहीं की जाएगी । और जिस स्थान पर आपने यज्ञ किया है उस स्थान को छोड़कर आपका कही और मंदिर नहीं होगा बस इसी श्राप की वजह से ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर पुष्कर में ही है और जो पुरुष आपकी और आपके मंदिर में पूजा करेगा उसके वैवाहिक जीवन में परेशानियां आएगी।

 कई ग्रंथो में यह उल्लेख है की शुभ मुहूर्त निकलता देख ब्रह्मा ने नंदिनी गाय के मुख से देवी गायत्री को प्रकट किया था और फिर उनसे विवाह करके यज्ञ पूर्ण किया तब देवी सावित्री ने सभी को श्राप दे डाला और यहाँ भी देवी सावित्री का गुस्सा शांत नहीं हुआ तब उन्होंने गाय को कलियुग में गंदगी खाने का श्राप दे डाला ।


 बाद में जब देवी सावित्री जी का क्रोध शांत हुआ तब उन्हें बड़ा पछतावा हुआ मगर श्राप वापस नहीं लिया जा सकता था तब देवी सावित्री पुष्कर के पास मौजूद पहाड़ियों पर जाकर तपस्या में लीन हो गईं आज भी वहा देवी सावित्री का मंदिर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है । सावित्री को सौभाग्य की देवी माना जाता है ।


 पुष्कर में पुष्करराज नाम का सरोवर है वही से कुछ दूरी पर एक  ऊंचे पहाड़ पर भगवान ब्रह्मा का प्राचीन मंदिर है जहाँ ब्रह्मा जी के दर्शनों के लिए लगभग साठ सीढ़ियां चढ़ने होती है इसी मंदिर में भगवान ब्रह्मा की चार मुंह वाली बेहद खुबसुरत प्रीतिमा है भगवान ब्रह्मा जी के साथ उनकी दूसरी पत्नी जिसके साथ भगवान ब्रह्मा जी ने यज्ञ किया उनकी भी प्रतिमा हैं भगवान ब्रह्मा जी की यह दूसरी पत्नी देवी गायत्री है जी हाँ वही देवी गायत्री जिसका मंत्र आपने कई बार सुना होगा । 


Narendra Agarwal 

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