हिन्दू धर्म दान एक्ट'' 1951 हिन्दू मंदिरों पर काला कानून The Hindu Religious and Charitable Endowment Act of 1951 in Hindi

The Hindu Religious and Charitable Endowment Act of 1951 in Hindi

 हिन्दू धर्म दान एक्ट'' 1951 हिन्दू मंदिरों पर काला कानून 

यदि आप एक हिन्दू है तो आपको कसम है अपने माता पिता और इष्ट देव की इस लेख को पूरा अंत तक पढने का कष्ट कर लेना

1947 से भारत आजाद हुआ कई सरकारे आई कई चली गयी देश प्रगति के पथ पर बढ़ता रहा स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही हमारी सरकारें हिन्दू विरोधी रही हैं जो भी सरकार आई उसने हिन्दू विरोधी ऐसे कानून बनाए जो आपको मालूम नहीं और मालूम होने पर आपके रौंगटे खड़े हो सकते है यह बात मेरी अपनी नहीं है विदेशी लेखक Stephen Knapp ने अपनी पुस्तक Crimes Against India and the need to Protect Ancient Vedic Tradition  में जो कुछ भी लिखा है वो वास्तव में दिल दहला देने वाला है इस लेखक ने अपनी पुस्तक में लिखा की हिन्दू अपने अस्तित्व को बचने में सक्षम नहीं है लेकिन क्या सच मच ऐसा है की हिन्दू अपने अस्तित्व को बचाने में अक्षम हैं??  आखिर क्यों एक विदेशी लेखक को यह अपनी किताब लिखना पड़ा इसके लिए भारत में मौजूद एक कानून The Hindu Religious and Charitable Endowment Act of 1951. को समझना होगा ।

 

जी हाँ क्या आपने कभी The Hindu Religious and Charitable Endowment Act of 1951 का नाम भी सुना है मुझे मालूम है आपने नहीं सुना और सुना भी है तो बस केवल नाम ही सुना है इस कानून में क्या है यह आप नहीं जानते है

तो सबस पहले यह कानून जनाना होगा की आखिर यह कानून है क्या

 

The Hindu Religious and Charitable Endowment Act of 1951

तो चलिए हम आपको बताते है इस कानून के अनुसार भारत में मौजूद बड़े बड़े मंदिरों का प्रबन्ध सरकार अपने हाथो में ले लेती है इन मन्दिरों के प्रबंधन के लिए सरकार के द्वारा एक IAS अधिकारी को नियुक्त किया जाता है। और फिर यही अधिकारी उस मंदिर को अपने अपने ढंग से चलाता है।

 

इस कानून के कारण बहुत सी राज्य सरकारो ने हज़ारों मन्दिरों को अपने अधिकार में ले किया है और मनमाने ढंग से इनकी सम्पत्ति का दुरुपयोग किया जाता है ।

 

तो अब आप कहेंगे तो इसमें क्या गलत है और क्या बड़ी बात है तो बात यहाँ यह है कि यह नियम केवल यह कानून केवल हिन्दू मंदिरों पर ही लागु होता है भारत में मौजूद मस्ज़िदों और चर्चों पर यह कानून लागु नहीँ होता है क्योकि सरकारें मुसलमानों और ईसाइयों से भय खाती हैं और उनका भरण पोषण करती हैं या दोनों ही बातें हैं आपको फिर से बता दे यह बात मेरी अपनी नहीं है यह बात या यह आरोप विदेशी लेखक Stephen Knapp के  द्वारा अपनी किताब Crimes Against India and the need to Protect Ancient Vedic Tradition में लिखा गया है और यह पुस्तक Crimes Against India and the need to Protect Ancient Vedic Tradition अमरीका में छपी है।

 

Book Crimes Against India and the need to Protect Ancient Vedic Tradition

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लेखक कहते है की सदियों पूर्व हमारे देश के राजा महाराजाओं और धार्मिक प्रवृति के धनाढ्य लोगो के द्वारा  सैंकड़ो मन्दिरों का निर्माण जनता के द्वारा जनमानस द्वारा इकट्ठी की गई दानस्वरूप धनराशि से किया गया । उस समय मंदिरों से प्राप्त होने वाली धनराशि लोक कल्याण के लिए भी प्रयोग में लिया जाता था । लेखक कहते है की मान लिया जाए की मंदिर की सम्पत्ति के रख रखाव में अनियमितताएं हैं और उनका दुरुपयोग हो रहा है तो भी सरकार का इसमें दख़ल नहीँ होना चाहिए। इसका प्रतिवाद श्रद्धालुओं के अधिकार क्षेत्र में ही होना चाहिए ।  सरकार द्वारा संचालित मन्दिरोँ की सम्पदा को वह मनमाने ढंग से हस्तक्षेप कर अन्य कार्यों के लिए प्रयोग में लाती है ।

लेखक कहते है किसी भी धर्मनिष्ठ राजा ने उस समय इन मंदिरों के निर्माण के बाद इन पर अपना आधिपत्य स्थापित नहीँ किया यहाँ तक की बहुत से राजाओं ने तो शिलालेखो पर अपने नाम तक नहीँ लिखवाए राजाओ ने बहुत सी ज़मीनें, हीरे, जवाहरात एवं सोना इत्यादि तक मन्दिरों को दान स्वरूप दिया और साड़ी सम्पति को सुगमतापूर्वक संचालन का अधिकार मन्दिर प्राधिकरण को सौंप दिया। कभी भी मन्दिरोँ पर आधिपत्य नहीँ जताया।

 

जबकि वर्तमान सरकारो द्वारा कुछ एक मन्दिरों को छोड़ आजादी के बाद किसी भी बड़े मन्दिर का निर्माण  नहीँ कराया गया गया ऐसी स्थिति में उन्हें मन्दिरोँ की विपुल संम्पति एवं पूजा पद्यति पर आधिपत्य जताने का कोई अधिकार नहीँ रहा जाता है। मन्दिरों का धन केवल उन्हीं के रखरखाव, निर्माण कार्यों के लिए खर्च किया जाना चाहि यदि कोई राशी बचती है तो बची हुई धनराशि दूसरे पुराने पड़ चुके मन्दिरों के जीर्णोद्धार पर खर्च की जानी चाहिए ।

 

आंध्रप्रदेश में इस कानून के अंतर्गत 43000 मन्दिरोँ का अधिग्रहण कर लिया गया है और इनसे प्राप्त राजस्व इनकम का मात्र 18% ही मन्दिरोँ के रख रखाव के लिए दिया जाता है बाकी के 82% कहाँ ख़र्च हुए उसका कोई हिसाब नहीँ है ।

 

एक तरफ हम समानता की बाते करते है वही दूसरी और स्वतन्त्र भारत के इतिहास में यह कानून अपने ही तरीके का सौतेला व्यवहार है । क्यों कोई सरकार किसी दूसरे धर्म को हाथ लगाने की जुर्रत नहीँ कर पाती। क्यों इस कानून के तहत अन्य धर्म नहीं आते हिन्दू धर्म के अलावा अन्य धर्मो के धार्मिक स्थलों के पास अरबों खरबों की सम्पत्ति है और इस राशि से क्या होता है वो किसी से छुपा हुआ नहीं है

 

अमेरिकन लेखक Stephen Knapp अपनी किताब Crimes Against India and the need to Protect Ancient Vedic Tradition में लिखते हैं कि विश्व प्रसिद्ध तिरुमला तिरुपति मन्दिर प्रतिवर्ष 3100 करोड़ रुपये इकट्ठे करता है जिसका 85% सरकारी खजाने में जाता है। और उन कामों पर खर्च होता है जिनका हिंदु धर्म से कोई लेना देना नहीँ आप और हम किसके लिए यह राशी मंदिरों में दान करते है सोचना होगा ।

 

लेखक ने इसी कानून के आड़ में आंध्रप्रदेश सरकार पर दूसरा बड़ा दोषारोपण किया है की सरकार ने 10 मन्दिरों को ध्वस्त कर वहां गोल्फ़ मैदान बना दिए है Knapp लिखते हैं अग़र 10 मस्जिदों को ध्वस्त कर दिया होता क्या होता तो आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं क्या होता??

 

कर्नाटक में 2 लाख मन्दिरों से 79 करोड़ रुपये इकट्ठे किये गए और उनके रखरखाव के लिए केवल 7 करोड़ दिए गए। बचे हुए 72 करोड़ में से 59 करोड़ मदरसों के लिए ओर 13 करोड़ चर्च के लिए दिए गए। साफ पता चलता है कि हिंदुओ की धनराशि का उपयोग उन धर्मों के लिए किया जाता है जो धर्मान्तरण को बढ़ावा देते हैं।

अब क्या ही कहे इसे विडंम्बना ही कह सकते है आपके और मेरे जैसे हिंदुओं का धन जो आप बड़े मंदिरों में भेंट करते है दान करते है उसी धन से हिंदुओं की मौत का सामान खरीदा जा रहा है।


Source Various News and social media 

Narendra Agarwal 
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