राजस्थान में इन मंदिरों में स्थापित है स्वयंभू प्रकट चमत्कारी प्रतिमायें
सालासर बालाजी धाम
हनुमान जी पवित्र धाम सालासर बालाजी
धाम राजस्थान के एक छोटे से कस्बे सालासर में स्थित है यह गाँव राजस्थान के चूरू जिले का एक हिस्सा है और जयपुर - बीकानेर राजमार्ग पर स्थित है। सालासर बालाजी धाम सीकर से 57 किलोमीटर
की दुरी पर सुजानगढ़ से 24 किलोमीटर की दुरी पर और लक्ष्मणगढ़ से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
जन
मान्यता है की बालाजी की जी जो मूर्ति सालासर बालाजी धाम में स्थापित है वो स्वयम
भू प्रतिमा है और सालासर बालाजी एक चमत्कारी देवता है । मान्यताओ के अनुसार संवत् 1811 में श्रावण शुक्लपक्ष नवमी शनिवार के दिन एक चमत्कार हुआ । असोटा
गाँव में एक जाट किसान अपने खेत को जोत रहा था आसोटा गाँव नागौर जिले में स्थित है
अचानक किसान ने महसूस किया की कोई चीज है जो उसके हल टकरायी है और उसके टकराने से एक
गूँजती हुई आवाज पैदा हुई तब किसान ने उस जगह की खुदाई शुरू की उसने सोचा हो सकता
है इसके नीचे कोई खजाना गढ़ा हुआ हो तो उसने तेजी से मिट्टी को खोदा और कुछ देर बाद
उनसे देखा वहां मिट्टी में सनी हुई दो मूर्त्तियाँ रखी हुई है ठीक उसी समय किसान की
पत्नी उसके लिए भोजन लेकर वहाँ खेतो में आई तब किसान ने वो दोनों मुर्तिया अपनी
पत्नी को दिखायी किसान की पत्नी धार्मिक प्रवर्ती की थी उसने अपनी साड़ी के पल्लू से
मूर्त्तियों को साफ़ किया तब उन्होंने देखा की यह मूर्त्ति बालाजी भगवान श्री
हनुमानजी की है तुरंत उन्होंने अपने सिर झुकाये और वही बैठ कर बालाजी महाराज की
पूजा की। कुछ ही देर में भगवान बालाजी के प्रकट होने का समाचार आग की तरह पुरे गाँव
में फ़ैल गया।
जाते जाते यह खबर असोटा गाँव के ठाकुर के पास भी पहुच गयी ठाकुर भी बालाजी का परम भक्त था उसी रात बालाजी ने उसके सपने में आकर उसे आदेश दिया कि इस मूर्त्ति को चूरू जिले में सालासर गाँव भेज दी जाए । ठीक उसी रात हनुमान ने अपने एक प्रिय भक्त मोहन दासजी महाराज जो की सालासर में रहा करते थे उन्हें भी सपने में दर्शन दिए और सपने में उन्हें असोटा की मूर्त्ति के बारे में बताया। बालाजी महाराज का आदेश पाकर भक्त मोहन दासजी ने तुरन्त आसोटा के ठाकुर को एक सन्देश भेजा। जब ठाकुर को यह पता चला कि आसोटा आये बिना ही मोहन दासजी को मूर्ति के बारे में सब कुछ मालूम है तो वे आश्चर्य चकित रह गये। अब ठाकुर साब ने मान किया की निश्चित रूप से, यह सब सर्वशक्तिमान भगवान बालाजी की कृपा से ही हो रहा था तब असोटा के ठाकुर ने उस स्वयम भू प्रकट मूर्त्ति को सालासर भेजने का प्रबंध किया और इसी जगह को आज सालासर धाम के रूप में जाना जाता है। अब आप कहेगे की मुर्तिया तो दो निकली थी दूसरी मूर्ति कहा गयी तो सुनिए दूसरी मूर्त्ति को इस स्थान से 25 किलोमीटर दूर पाबोलाम (जसवंतगढ़) में स्थापित कर दिया गया। पाबोलाव में सुबह के समय समारोह का आयोजन किया गया और उसी दिन शाम को सालासर में समारोह का आयोजन किया गया। सालासर बालाजी कलयुग में साक्षत देव है और भक्तो की हर मनोकामना पूरी करते है ।
भगवान श्रीनाथ जी
कहते
है एक बार भगवान
श्रीकृष्ण
ने अपने भक्तों से प्रसन्न होकर वरदान दिया की कलयुग में मैं समस्त जीवों के कल्याण
के लिये ब्रजलोक में श्रीनाथजी के नाम से प्रकट होउंगा
। और उसी वरदान के कारण भगवन श्कृष्ण ब्रजलोक में मथुरा के निकट जतीपुरा गाँव में
श्री गोवर्धन पर्वत पर श्रीनाथजी रूप में प्रकट हुये । जब श्रीनाथ जी के प्रकट
होने का समय
नजदीक
आया श्रीनाथजी की लीलाएँ शुरु हो गई ब्रजवासियों की गायें घास चरने
श्रीगोवेर्धन पर्वत पर जाया करती थी उन्हीं गायो में एक ग्वाले सद्द् पाण्डे की
घूमर नाम की गाय वहां गोरधन पर्वत पर अपना कुछ दूध श्रीनाथजी के लीला स्थल पर अर्पित
करके आती थी रोजाना ऐसे ही होने लगा जब कई दिनों तक यह् सिलसिला चलता रहा तो गाँव
वालो में कौतुहल
जाग
उठा कि आखिर ये क्या चमत्कार है ये क्या लीला है तब गाँव वालो ने खोजबीन की तो उन्हें
श्री गिरिराज
पर्वत
पर उन्हें श्रीनाथजी की उर्ध्व वाम भुजा के दर्शन हुये । वहीं गौमाताएं अपना दूध
चढा कर आती थी।
तब उन्हें यह् भगवान श्री कृष्ण का चमत्कार लगा और उन्होंने उर्ध्व भुजा की पुजा आराधना शुरु कर दी धीरे धीरे संवत् 1535 में वैशाख कृष्ण की ग्यारस के दिन गिरिराज पर्वत पर श्रीनाथजी के मुखारविन्द का प्राकट्य हुआ और उसके बाद लोगो को श्री नाथ जी के सम्पूर्ण स्वरूप के दर्शन हुए ।
फिर
भारत में मुगलों
का शासन आया प्रभु ने फिर अपनी लीला शुरू की मुगल
सम्राट औरंगजेब हिन्दू आस्थाओं और मंदिरों को नष्ट करने में लगा था मेवाड में प्रभु श्रीनाथजी को अपनी
परम भक्त
मेवाड राजघराने की राजकुमारी अजबकुँवरबाई को
दिये वचन को पूरा करने के पधारना
था
। तब प्रभु ने फिर एक लीला रची । श्री बालकृष्णजी व श्रीवल्लभजी जो श्री नाथ जी की
सेवा में लगे हुए थे औरंगजेब के अत्याचारों
की बाते सुन सुन कर वो बड़े चिंतित रहते थे उन्हें लगता था की कही औरंगजेब यहाँ ना
आ जाए सब कुछ श्री नाथ जी की लीला के अनुसार हो रहा था तो श्री बालकृष्णजी व
श्रीवल्लभजी श्रीनाथजी को सुरक्षित स्थान पर बिराजमान कराने
का निर्णय किया। प्रभु से आज्ञा लेकर वो निकल पडे।
वो
श्री नाथ जी को एक रथ में विराजमान करके निकाल पड़े रस्ते में आने वली सभी रियासतों
आगरा, किशनगढ कोटा, जोधपुर
आदि के राजाओं से उन्होंने श्री नाथ जी को अपने अपने राज्य में प्रतिष्ठित
कराने का निवेदन किया लेकिन सभी को मुगलों का डर था कोई भी राजा मुगल सम्राट ओरंगजेब से दुश्मनी
नहीं लेना चाहता था किसी में इतना सहस नहीं था की वो हिन्दू देवता को अपनी रियासत
में जगह दे सके तब सभी भक्त प्रभु के साथ आगे निकल पडे ।
जैसे
ही श्री नाथ जी का रथ मेवाड में पंहुचा रथ का पहिया सिंहाड ग्राम जिसे आप वर्तमान श्रीनाथद्वारा के नाम
से जानते है रथ
का
पहिया सिंहाड ग्राम में आकर धंस गया
बहुत सारे प्रयत्न किये गए की रथ आगे बढे मगर सब
फेल हो गए रथ का पहिया बहार नहीं निकाला सब ने सोच जैसी प्रभु की इच्छा इसे प्रभु की लीला जानकर
सभी ने श्री नाथ जी के विग्रह को यहीं बिराजमान कराने का निश्चय किया
। संवत १७२८ फाल्गुन कृष्ण ७ को प्रभु श्रीनाथजी वर्तमान मंदिर मे पधारे और सिंहाड
ग्राम प्रभु शिर नाथ जी के नाम से श्रीनाथद्वारा के नाम से प्रसिद्ध
हुआ तब से प्रभु श्रीनाथजी के लाखों,
करोंडो
भक्त प्रतिवर्ष
श्रीनाथद्वारा
आते हैं ।
मेहंदीपुर बालाजी धाम
कलयुग
में लोग हनुमान जी को बालाजी के नाम से भी पुकारते है पूजते है क्योकि हनुमान जी
का एक नाम बालाजी महाराज भी है महदीपुर बालाजी इस मंदिर में हनुमान जी को बालाजी
नाम से पूजा जाता है यहाँ बालाजी की बड़ी ही अद्भुत और चमत्कारी स्वयम भू प्रकट
मूर्ति स्थापित है यहाँ आपको अनेक चमत्कार देखने को मिलते है एक तो यह मूर्ति
स्वम् चमत्कारी है इस मूर्ति में बाये और एक छोटा सा सुराख़ है और इस सुराख़ में से हमेशा
पानी की एक पतली धारा बहती रहती है यह पानी कहा से आता है इसका आज तक पता नहीं चल
पाया है मूर्ति से निकलने वाला यह पानी एक पात्र में इकठा किया जाता है और इस पानी
को यहाँ आने वाले भक्तो को प्रसाद के रूप में बाँटा जाता है।
मेहंदीपुर बालाजी धाम काफी प्राचीन मंदिर है एक समय था जब यहाँ
केवल घनघोर जंगल हुआ करता था इस क्षेत्र में शेर-चीता, बघेरा
आदि जंगल में जंगली जानवर घूमते रहते थे तो इस मंदिर का अपना एक इतिहास और कहानी
है इस कहानी के अनुसार कहते है की इस गाव के एक व्यक्ति जो की वर्तमान महंत जी के
पूर्वज थे लोग उन्हें गोसाई जी कहते थे एक दिन उन्हें एक बड़ा ही अनोखा अद्भुत स्वप्न
दिखाई दिया सपना देखते देखते वो सपने में नीद में ही उठ कर चलने लगे उन्हें ये भी पता
नही था कि वे किधर जा रहे हैं सपने में उन्होंने देखा एक बड़ा ही विचित्र स्थान है एक
ऒर से हज़ारों दीपक जलते आ रहे हैं चारो और से हाथी घोड़ो की आवाजें आ रही हैं एक
बहुत बड़ी फौज चली आ रही है उस फौज ने वहां श्री बालाजी महाराज जी, श्री
भैरो बाबा, श्री
प्रेतराज सरकार, को
प्रणाम किया और जिस रास्ते से फौज आयी उसी रास्ते से फौज चली गई और फिर गोसाई जी
की नीद टूट गयी तो खुद को उस स्थान पर पाया तो उन्हें कुछ डर सा लगा लेकिन फिर वो
अपने गांव की तरफ चल दिये घर जाकर वो सोने की कोशिश करने लगे परन्तु उन्हे नींद
नही आई बार-बार उसी स्वप्न के बारे में विचार करने लगे और फिर जैसे ही उन्हें फिर
से नींद आई फिर से उन्हें वो तीन मूर्तियाँ दिखाई देने लगी और एक विशाल मंदिर
दिखाई देने लगा उन्हें लग रहा था जैसे कोई उनके कानों में आवाज दे रहा है, बेटा उठो
मेरी सेवा और पूजा का भार ग्रहण करो मैं अपनी लीलाओं का विस्तार करूँगा। और कलयुग
में अपनी शक्तियाँ दिखाऊॅंगा मगर कोई दिखाई नहीं दे रहा था तो गोसाई जी महाराज इस
बार भी इस बात का ध्यान नही दिया ।
अंत में श्री बालाजी महाराज ने स्वयम उन्हें स्वप्न में साक्षत दर्शन दिए और कहा कि बेटा मेरी पूजा करो अगले ही दिन गोसाई जी उस स्थान पर पहुचे तो वहा तीन मुर्तिया दिखाई दी और तभी अचानक चारों ओर से घण्टा, घडियाल और नगाड़ों की आवाज़ आने लगी मगर उन्हें कुछ भी दिखाई नही दे रहा था ।
गोसाई महाराज नीचे आए और गावं में से लोगों को इकट्ठा किया अपने सपने के बारे में बताया कुछ लोगो ने उनके सपने पर विश्वास किया और सभी ने मिल कर वहा एक छोटी सी तिवारी बना दी लोगों ने भोग की व्यवस्था करा दी बालाजी महाराज ने उन लोगों को बहुत से चमत्कार दिखाए । लेकिन आस्तिक के साथ साथ नास्तिक लोग भी होते है सभी जगह होते है तो वहा जो दुष्ट लोग थे उनकी समझ में कुछ भी नही आ रहा था कि यह क्या हो रहा है क्यों लोग इस पत्थर को पूज रहे है श्री बाला जी महाराज की प्रतिमा/ विग्रह जहाँ से निकली थी नास्तिक लोगों ने उन्हे देखकर सोचा कि वह कोई कलाकरी कर रहा है तो दुष्ट लोग भी उसे देखने के लिए वहां गए मगर फिर चमत्कार हुआ दुष्टों के वहां जाने पर मूर्ति वहां से गायब हो गयी और तुरंत इस चमत्कार को देख वो लोग घबरा गए लोगों ने श्री बाला जी महाराज से क्षमा मांगी तो वो मूर्तियाँ फिर से दिखाई देने लगी ।
उस मूर्ति के पास ही एक कुंड बना हुआ है जिसका जल कभी ख़त्म नही होता है। रहस्य यह है कि श्री बालाजी महाराज के ह्रदय के पास के छिद्र से एक बारिक जलधारा लगातार बहती है। उसी जल से भक्तों को छींटे लगते हैं। और इस तरह तीनों देवताओं की स्थापना हुई । मेहंदीपुर बालाजी का विग्रह बहुत ही चमत्कारी है यहाँ हर प्रकार के संकट का निवारण होता है ।
त्रिनेत्र गणेश जी रणथम्भौर
भारत में चार स्वयंभू गणेश मंदिर माने जाते है, जिनमें
रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी सबसे पहला और सबसे प्राचीन स्वयं भू मंदिर माना
गया है कहते है की महाराजा विक्रमादित्य जिन्होंने
विक्रम संवत् की गणना शुरू की प्रत्येक बुधवार उज्जैन से चलकर रणथम्भौर स्थित
त्रिनेत्र गणेश जी के दर्शन हेतु नियमित जाते थे । रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश
जी मंदिर पूरी दुनिया में यह एकमात्र मंदिर है जहाँ भगवान गणेश जी अपने पूर्ण
परिवार, दो
पत्नी- रिद्दि और सिद्दि एवं दो पुत्र- शुभ और लाभ, के साथ विराजमान है, यह मंदिर राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले में
स्थित है चमत्कारी गणेश मंदिर विश्व धरोहर में शामिल रणथंभोर दुर्ग की चोटी
पर बना हुआ है अरावली और विन्ध्याचल पहाड़ियों के बीच स्थित रणथम्भौर दुर्ग
में विराजे रणतभंवर के लाड़ले त्रिनेत्र गणेश मंदिर प्रकृति और आस्था का एक अनूठा संगम है ।
खाटू श्याम बाबा
खाटू श्याम जी कलियुग के अवतारी माने जाते है महाभारत काल में श्री कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया था की वे कलयुग में उनके नाम श्याम नाम से पूजे जाएँगे । महाभारत काल में खाटू श्याम बाबा बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे। वे अति बलशाली गदाधारी भीम के पुत्र घटोत्कच और दैत्य मूर की पुत्री मोरवी के पुत्र हैं । बर्बरीक के शीश की एक लम्बी कहानी है जो हम आपको यहाँ नहीं बता रहे है तो बात करते है खाटू श्याम जी के कलयुग में प्रकट होने की खाटू नगरी में एक गाय उस स्थान पर जहाँ श्याम बाबा का शीश प्रकट हुआ वहां आकर रोज अपने स्तनों से दुग्ध की धारा स्वतः ही बहा देती थी ।
तब गाय के
मालिक ने वहा के राजा को यह बात बताई खाटू के राजा ने वहां खुदाई करवाई और वहां यह
शीश प्रकट हुआ, श्री
श्याम बाबा ने खाटू नगर के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिए और वह शीश
मन्दिर में सुशोभित करने के लिए आदेश दिया तब राजा के द्वारा उस स्थान पर मन्दिर
का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया, जिसे
बाबा श्याम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है । खाटूश्याम, परिवारों
की एक बड़ी संख्या के कुलदेवता है और कलयुग के अवतारी तीन तीर धारी हारे के सहारे
जैसे कई नामो से प्रसिद्ध है । खाटू श्याम बाबा के दर्शन करने मात्र से मन की इच्छा पूरी होती है ।
✍: Narendra Agarwal ✍
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