छठपूजा क्यों की जाती है छठ पर्व को कैसे मानते है कब मानते है
छठ पूजा 2022
बहुत से सवाल ऐसे है की छठ लोकपर्व या छठ क्यों
मनाई जाती है छठ पर्व का क्या महत्व है आखिर कौन है छठ माता और भी बहुत सारे सवाल
है जिनके जवाब शायद आज के इस लेख में आपको मिल जाए ।
सबसे ज्यादा छठ पूजा बिहार में मानते है
छठ पूजा को सूर्यषष्ठी पूजा भी कहा जाता है छठ
पूजा या व्रत मूल रूप से भारत के बिहार राज्य में मनाये जाने वाला पर्व है, लेकिन
संचार के बढ़ते माध्यमों के कारण अब यह पर्व धीरे धीरे सम्पूर्ण देश में मनाया जाने
लगा है, खासकर ऐसे स्थान जहां बिहार- झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश से लोग काम
धंधे के लिए गए और वही स्थायी या अस्थायी रूप में बस गए और अब वो वही पर रहते हुए छठ
पूजा कर रहे है उन्हें छठ पूजा करते देखकर दूसरे लोग भी छठ पूजा के महत्व को समझ
कर छठ पूजा कर रहे है ।
छठ पूजन मूल रूप से सूर्य देव का व्रत और पूजन है
सूर्य देव एक ऐसे देव जिनके आप रोजाना साक्षात् दर्शन कर पाते है और जिनके बिना जीवन
की कल्पना भी नहीं की जा सकती है तो कार्तिक या चैत्र शुक्ल छठ के दिन इन्ही सूर्यदेव
का पूजन किया जाता है और इनके साथ में छठ मैया का भी पूजन किया जाता है ।
इस व्रत और पूजन की पौराणिक मान्यता है, कहते है
की छठ माता संतान की रक्षा करती हैं संतान को स्वस्थ और दीघार्यु बनाती देती है
तो जाहिर सी बात है हर माँ अपनी संतान की रक्षा के लिए उसकी लम्बी आयु के लिए छठ
माता को मानती है उनका व्रत करती है और छठ पूजा करती है ।
तो आपको यह तो क्लियर हो गया होगा की छठ पूजा में
या छठ व्रत में सूर्यदेव और छठ माता दोनों की पूजा एक साथ की जाती है।
छठ पूजा को महापर्व के रूप में चार दिनों तक मनाया जाता है
बिहार में छठ पूजा को एक महापर्व के रूप में
मनाया जाता है यही कारण है की छठ पूजा का पर्व चार दिनों तक चलता है तो इस पूजा को
इस त्यौहार में छठ पूजा, छठी माई पूजा, डाला छठ, सूर्य षष्ठी पूजा और छठ पर्व आदि कई नामों से जाना जाता है।
छठ माता को प्रकृति का छठा अंश माना गया है और
इसी कारण से इस देवी को षष्ठी माता भी कहा जाता है धार्मिक ग्रंथो में षष्ठी
देवी को ब्रह्मा की मानसपुत्री माना गया है कही कही छठ माता को कात्यायनी नाम से
भी संबोधित किया गया है इनकी पूजा नवरात्र में षष्ठी तिथि के दिन की जाती है तो
यह देवी भी माँ दुर्गा के अनेक रूपों में से एक रूप है और षष्ठी देवी को ही स्थानीय
भाषा में छठ मैया कहते है इस देवी के सम्बन्ध में मान्यता है की यह देवी नि:संतानों
को संतान देती हैं और संतान युक्त माता के बच्चो की रक्षा करती हैं।
छठ पूजा की पौराणिक कहानी
एक प्राचीन कहानी के अनुसार राजा प्रियव्रत के कोई
संतान नहीं थी संतान सुख से वंचित रहने के कारण वह हमेशा दुखी रहा करते थे एक बार महर्षि
कश्यप ने राजा प्रियव्रत को पुत्रेष्टि यज्ञ कराने की सलाह दी ऋषि की आज्ञा
अनुसार राजा ने यज्ञ कराया और महारानी
मालिनी ने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया लेकिन शिशु मरा हुआ पैदा हुआ अब राजा और
अधिक दुखी हो गया बच्चा हुआ और वो भी मरा हुआ राजा घोर दुखी हो गया तभी एक वहां एक
दिव्य देवी प्रकट हुईं देवी ने राजा के मृत बालक को छुआ और मृत बालक जीवित हो उठा
इस देवी की कृपा से राजा बहुत खुश हो गया और उन्होंने उस देवी की स्तुति की वो
देवी छठ माता थी कहते है तभी से यह पूजा संपन्न की जा रही है।
तो यह व्रत हर माँ अपनी संतान के सुखद भविष्य के
लिए रखती है और हाँ छठ पर्व का व्रत रखने से नि:संतानों को संतान भी प्राप्त हो
जाती है । जीवन की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भी छठ माई का व्रत रखा जाता
है।
चार दिनों तक ऐसे मानते है महापर्व छठ पूजा को
जैसा की पहले बताया गया था छठ का पर्व चार दिनों
के लिए मनाया जाता है पहले दिन को नहाय खाय कहते है, इस दिन घर की साफ़ सफाई की
जाती है और छठ का व्रत करने वाला व्यक्ति स्नान करके पवित्र रूप से शाकाहारी भोजन
ग्रहण करके छठ व्रत की शुरुवात करता है इस
दिन को कद्दू-भात भी कहा जाता है क्योकि इस दिन व्रत करने वाला व्यक्ति चावल, चने की दाल और कद्दू
जिसे घिया या लौकी भी कहते है इसी की सब्जी बना कर प्रसाद के रूप में ग्रहण करता
है ।
छठ पूजा का दूसरा दिन खरना या लोहंडा कहलाता है छठ
का व्रत करने वाला व्यक्ति इस दिन उपवास करता है और शाम को एक समय ही भोजन करता है
इस भोजन को खरना कहा जाता है खरना का प्रसाद विशेष तरीके से बनाया जाता है चावल को
गन्ने के रस में पकाया जाता है या फिर चावल को दूध में पकाकर चावल का पिठ्ठा और
चुपड़ी रोटी बनाई जाती है और इसे ही शाम के समय पूजा पाठ करने के बाद छठ व्रत के प्रसाद
के रूप में खाते हैं बाद में घर के अन्य सदस्यों को भी प्रसाद के रूप में वही भोजन
मिलता है।
छठ पर्व का तीसरा दिन इस दिन व्रत रखने वाले दिन
भर डलिया और सूप में नानाप्रकार के फल लडुआ चावल का लड्डू चीनी का सांचा आदि लेकर शाम को बहते हुए पानी में तालाब या नदी में बीच में जाकर पानी में खड़े होकर सूर्य की पूजा करते है इसमें परिवार
के सभी सदस्य अर्घ्य देते हैं और फिर घर आकर रात में छठ माता के गीत भी गाए जाते
हैं।
छठ पर्व के चौथे और अंतिम दिन में छठ का व्रत
रखने वाला व्यक्ति सूर्य उगने से पहले उसी तालाब या नदी पर जाता है जहां तीसरे दिन गए थे उगते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है और अर्ध्य देते समय अपनी
मनोकामना रखी जाती है भगवान् सूर्य से मनोकामना पूर्ण करने के लिए प्रार्थना की
जाती है । परिवार के सभी सदस्य भी व्रत करने वाले के साथ ही सूर्यदेव को अर्घ्य
देते हैं और फिर वापस अपने घर को आते हैं।
छठ व्रती चार दिनों का कठिन व्रत करके चौथे दिन
पारण करते हैं और प्रसाद का आदान-प्रदान कर व्रत संपन्न करते हैं। यह व्रत 36 घंटे से भी अधिक समय
के बाद समाप्त होता है।
कब मानते है छठ व्रत पूजा या पर्व को
छठ महापर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है चैत्र
माह में और दूसरी बार कार्तिक माह में दोनों ही समय में यह शुक्ल पक्ष की छठ के
दिन मनाया जाता है चैत्र शुक्लपक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्लपक्ष
षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है.
सूर्य पुत्र कर्ण ने शुरू की थी सबसे पहले सूर्य पूजा
कहते है की छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में ही हो गयी थी शुरुआत सबसे पहले
सूर्यपुत्र कर्ण ने की थी कर्ण रोजाना घंटों तक कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य की
पूजा करते थे और उन्हें अर्घ्य दिया करते थे और सूर्य की कृपा और तेज से ही वह एक महान
योद्धा बने तब से आज तक छठ पूजा में सूर्य
को अर्घ्य देने परंपरा चली आ रही है।
कुछ मान्यताये कहते है की देवताओ की माता अदिति
ने सबसे पहले छठ पूजा की थी जब प्रथम बार देवासुर संग्राम हुआ तो जब असुरों के
द्वारा देवता हारने लगे तब माता अदिति ने सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की
थी तब छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र का वरदान दिया उस वरदान के
कारण अदिति के पुत्र के रूप आदित्य भगवान ने जन्म लिया और असुरों पर देवताओं को
विजय दिलायी ।
छठी माता को भगवान सूर्य देव का बहन भी माना जाता
है कहते है की सूर्य देव की पूजा करने से छठी माता खुश होती हैं और मनोवांछित
वरदान देती है भैयादूज के तुरंत बाद
यह त्योहार शुरू हो जाता है इस पूजा में किसी भी प्रकार की मूर्ति पूजा नहीं होती
और हाँ इस त्योहार को पुरुष
और महिलाएं दोनों ही मिलकर मानते है
Chhath Puja 2021 में कब है छठ पूजा
तो सुनो वर्ष 2022 में छठ पूजा का त्योहार 28 अक्टूबर 2022 यानी की शुक्रवार से शुरू होगा 28 अक्टूबर 2022 से नहाय-खाय से यह पर्व शुरू होगा, 29 अक्टूबर 2022 को खरना और 30 अक्टूबर 2022 को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और 31 अक्टूबर 2022 की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा का समापन किया जाएगा ।क्यों मनाया जाता है Chhath Puja , क्या है इसका इतिहास , क्यों मनाया जाता है छठ, क्या है इसका इतिहास,छठ पूजा क्यों मनाया
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