जगन्नाथ रथ यात्रा 2023 कब है
जगन्नाथ रथ यात्रा क्यों की जाती है कैसे निकली
जाती है यात्रा के बाद रथ का क्या करते है
आषाढ़ माह में भगवान जगन्नाथ
जी को उनके भाई बलराम जी और बहन सुभद्रा के साथ तीन किलोमीटर की अलौकिक रथ यात्रा
के जरिए इन्हें गुंडिचा मंदिर लाया जाता है बहुत से लोगो को मालूम नहीं है की यह
रथ यात्रा क्यों निकली जाती है कब निकली जाती है तो आज इस विडियो में आपको जगन्नाथ
मंदिर पूरी ओड़िसा में निकलने वाली रथ यात्रा की पूरी जानकरी मिलने वाली है तो बने
रहिये इस विडियो के साथ
देखिये 'जगन्नाथ रथ
यात्रा' हर वर्ष धूमधाम से निकाली
जाती है यह रथ यात्रा अपने आप में बहुत ही अनूठी है इस
रथ यात्रा में देश विदेश से दुनिया के कोने-कोने से लोग आते हैं पूरे साल इनकी पूजा मंदिर के गर्भगृह में होती
है किन्तु आषाढ़ माह में तीन बड़े बड़े लकड़ी
से बने रथो में इन्हें यात्रा करते हुए भक्त जन इन अलौकिक रथ को खीचते हुए भगवान
को गुंडिचा मंदिर तक लेकर जाते है .
अब मन में यह भी सवाल आता होगा
की भगवान को गुंडिचा मंदिर ही क्यों लेकर जाते है
तो चलिए जानते है की क्यों निकाली जाती है रथयात्रा
तो देखिये कहते है की इन प्रतिमाओं का निर्माण राजा इंद्रद्युम के द्वारा करवाया गया था जब उन्होंने जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां बनवाई तो रानी गुंडिचा ने मूर्तियां बनाते हुए मूर्तिकार विश्वकर्मा और मूर्तियों को देख लिया जिसके चलते मूर्तियां अधूरी ही रह गई तब आकाशवाणी हुई कि भगवान इसी रूप में स्थापित होना चाहते हैं। इसके बाद राजा ने इन्हीं अधूरी मूर्तियों को मंदिर में स्थापित कर दिया उसी समय एक आकाशवाणी और हुई कि भगवान जगन्नाथ साल वर्ष में एक बार अपनी जन्मभूमि मथुरा जरूर आएंगे स्कंद पुराण के उत्कल खंड के अनुसार राजा इंद्रद्युम ने आषाढ़ शुक्ल द्वितीया के दिन भगवान को उनकी जन्मभूमि ले जाने की व्यवस्था की थी तभी से यह परंपरा रथयात्रा के रूप में चली आ रही है।एक मान्यता यह भी है की आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर जाते तभी से उन्हें हर वर्ष उनकी मौसी से घर ले जाया जाता है
इस संबंध में पद्म पुराण में
भी एक कहानी मिलती है जिसके अनुसार एक बार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने भगवान
से नगर भ्रमण करते हुए नगर देखने की इच्छा
व्यक्त की और फिर भगवान जगन्नाथ जी और बलराम
जी उनकी लाडली बहन देवी सुभद्रा को एक आलोकिक रथ में बैठाकर नगर भ्रमण के के लिए निकल थे और भ्रमण
करते हुए वो सभी उनकी मौसी गुंडिचा के घर भी गए और वो वहाँ सात दिन तक रुके कहते
है तभी से जगन्नाथ यात्रा निकालने की परंपरा चली आ रही है. इस बात का वर्णन नारद
पुराण में भी मिलता है और साथ ही ब्रह्म पुराण में भी ऐसा ही जिक्र मिलता है.
अब देखिये उड़ीसा का जगन्नाथ मंदिर हिन्दू धर्म के चार पवित्र धामों
में से एक है और यह एक बहुत ही प्राचीन मान्यता है कहते है की भगवान जगन्नाथ की इस रथयात्रा में सभी भक्तों को
जरूर से शामिल होना चाहिए क्योंकि इस रथयात्रा के दर्शन मात्र से ही देखने वालो को
100 यज्ञों को
करवाने का पुण्य फल प्राप्त होता है ।
अब बात करते है की यह पर्व कब मनाया जाता है तो सुनिए आषाढ़ मास की
द्वितीया तिथि से लेकर आषाढ़ मास एकादशी तक यह पर्व मनाया जाता है कहते है की इस
पर्व के दौरान भगवान जगन्नाथ स्वयं अपने भक्तों के बीच किसी ना किसी रूप में जरूर
होते है ।
चलिए रथ यात्रा के बारे में आपको थोड़ी जानकारी देते है
तो देखिये इस रथ यात्रा में कुल तीन रथ होती हैं पहला बलराम जी का रथ
श्री बलराम जी के रथ को 'ताल ध्वज'
कहा जाता है और इस रथ का रंग लाल और हरा होता है वही दूसरा रथ देवी सुभद्रा का रथ होता है जिसे 'दर्प दलन' या ‘पद्म रथ’ कहा जाता है देवी सुभद्रा का
रथ काले या नीले और लाल रंग का होता है,
मुख्य रथ भगवान जगन्नाथ जी का रथ होता है जिसे 'नंदी घोष' या 'गरुड़ध्वज'
कहा जाता है इस रथ का रंग
लाल और पीला होता है।
रथ यात्रा में चलने वाले रथो का भी एक विशेष क्रम होता है
रथयात्रा में आगे ही आगे सभी रथो से पहले बलरामजी का रथ होता है फिर उसके
बाद उसके पीछे ही देवी सुभद्रा का रथ होता है और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ जी यानी श्रीकृष्ण
का रथ होता है इन रथो की ऊचाई भी जबरदस्त
होती है नंदी घोष रथ 45.6 फीट ऊंचा, तालध्वज रथ 45 फीट ऊंचा और दर्पदलन रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है यानी की सबसे पीछे वाला रथ सबसे ऊँचा रथ होता है ।
भगवान जगन्नाथ जी के रथ में 16 पहिये होते
हैं और सभी भक्त जन इसे रस्सी से खेचते है जिस रस्सी से रथ को खीचा जाता है उसे
शंखाचुड़ा नाड़ी कहते हैं।
श्री बलरामजी के रथ में 14 पहिये होते
हैं इस रथ को खिंचने वाली रस्सी को बासुकी कहा जाता है
और बहन सुभद्रा के रथ में 12 पहिये लगे
होते और इसे जिस रस्सी से खिंचते है उसे स्वर्णचूड़ा नाड़ी कहा जाता है।
जब यह रथ यात्रा के शुरू होती है तो राजाओं के वंशज भगवान जगन्नाथ के
रथ के आगे सोने के हत्थे वाले झाड़ू से भगवान जगन्नाथ के रथ के आगे झाड़ू लगाते
हुए चलते है और फिर पूरे विधि विधान के साथ मंत्रों के महा उच्चारण के साथ रथ यात्रा शुरू
की जाती है भक्तजन इन रथों को बहुत ही श्रद्धा पूर्वक खिंचते हैं।
रथ यात्रा निकालने के 15 दिन पहले ही
जगन्नाथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं. और फिर रथ यात्रा तक कोई भी व्यक्ति
भगवन जगन्नाथ जी के दर्शन नहीं कर सकता है ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन भगवान
जगन्नाथ जी और उनकी बहन सुभद्रा और उनके भाई बलराम जी की प्रतिमाओं को मूर्तियों
को गृर्भगृह से बाहर लाया जाता है और
पूर्णिमा स्नान के बाद 15 दिन के लिए वे एकांतवास में चले
जाते हैं. माना जाता है पूर्णिमा स्नान में ज्यादा
पानी से नहाने के कारण भगवान बीमार हो जाते हैं. इसलिए एकांत में उनका उपचार किया
जाता है.
भगवान के इन रथों का निर्माण करीब 42 दिन
में 4,000 लकड़ी के टुकड़ों से किया जाता है जिनको वंशानुगत
अधिकार वाले बढ़ई के द्वारा ही बनाया जाता है
अब आप यह भी जानना चाहते होंगे की भाई यह रथ तो हर वर्ष बनते है
फिर पुराने रथों का क्या होता है तो देखिये त्योहार के पूर्ण हो जाने के बाद इन रथो की लकड़ी
को अलग कर दिया जाता है और फिर इन रथों को मंदिर में प्रसाद बनाने के लिए रसोई में
प्रयोग में लाया जाता है।
चलिए अब आपको वर्ष 2023 का रथ यात्रा का
कार्यक्रम भी बता देते है
जगन्नाथ रथ यात्रा 2023 |
20 जून
2023, मंगलवार |
द्वितीया तिथि
प्रारम्भ |
19 जून
12:55 से |
द्वितीया तिथि समाप्त |
20 जून
14:37 |
✍: Narendra Agarwal ✍
जगन्नाथ रथ यात्रा कब और क्यों की जाती है 2023 विडियो देखे
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