विवाह का प्रथम
निमंत्रण – कौन और क्यों?
भारतीय संस्कृति में विवाह सिर्फ दो
व्यक्तियों का नहीं, बल्कि दो परिवारों
और संपूर्ण समाज का मिलन होता है। यह एक पवित्र बंधन है, जिसे
संपन्न करने से पहले विभिन्न देवी-देवताओं, पूर्वजों और
परिजनों को निमंत्रण दिया जाता है। यह परंपरा सदियों पुरानी है और हर निमंत्रण के
पीछे गहरी आस्था और मान्यताएँ छिपी होती हैं। आइए जानते हैं कि विवाह में पहला,
दूसरा, तीसरा, चौथा और
पाँचवाँ निमंत्रण किसे और क्यों दिया जाता है।
पहला
निमंत्रण – भगवान गणेश को
विवाह समारोह की शुरुआत से पहले सबसे
पहला निमंत्रण भगवान गणेश को दिया जाता है। उन्हें ‘विघ्नहर्ता’ और ‘मंगलकर्ता’
कहा जाता है। किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले गणेश जी की पूजा करना आवश्यक
माना जाता है, ताकि कार्य बिना
किसी बाधा के पूर्ण हो सके। विवाह भी एक शुभ अवसर है, इसलिए
गणेश जी को पहला निमंत्रण भेजकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है।
परंपरागत रूप से, विवाह कार्ड पर भी गणेश जी का चित्र या "श्री
गणेशाय नमः" लिखा होता है। ऐसा माना जाता है कि गणेश जी का नाम लिए बिना कोई
भी कार्य सफल नहीं होता। उनके आशीर्वाद से विवाह संपन्न होता है और दंपति का
वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है।
दूसरा निमंत्रण – भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को
भगवान विष्णु को सृष्टि का पालनकर्ता
माना जाता है और माता लक्ष्मी को धन, ऐश्वर्य,
और समृद्धि की देवी। विवाह के दौरान वधू को "लक्ष्मी" और
वर को "नारायण" माना जाता है। इसलिए यह आवश्यक होता है कि
विष्णु-लक्ष्मी का आशीर्वाद लिया जाए, ताकि नवदंपति का जीवन
सुख, समृद्धि और वैभव से भरपूर रहे।
माना जाता है कि भगवान विष्णु के
बिना गृहस्थ जीवन अधूरा होता है, और
माता लक्ष्मी के बिना संपन्नता नहीं आती। इसलिए, उन्हें
दूसरा निमंत्रण भेजा जाता है ताकि वे वर-वधू पर अपनी कृपा बनाए रखें।
तीसरा
निमंत्रण – भगवान हनुमान को
भगवान हनुमान शक्ति, साहस और भक्ति के प्रतीक हैं। विवाह के समय उनके
आशीर्वाद से नवविवाहित जोड़े को मानसिक और शारीरिक शक्ति प्राप्त होती है, जिससे वे अपने वैवाहिक जीवन की चुनौतियों का सामना कर सकें।
हनुमान जी को विवाह समारोह में
आमंत्रित करने का एक और कारण यह भी है कि वे बुरी नजर और नकारात्मक शक्तियों से
रक्षा करते हैं। भारतीय संस्कृति में यह मान्यता है कि विवाह के दौरान कई बाधाएँ आ
सकती हैं, और हनुमान जी का
आशीर्वाद इन सभी से रक्षा करता है। इसलिए तीसरा निमंत्रण उन्हें दिया जाता है।
चौथा
निमंत्रण – कुलदेवी या कुलदेवता को
हर परिवार की अपनी एक कुलदेवी या
कुलदेवता होती है, जिनकी पीढ़ियों से
पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि कुलदेवी और कुलदेवता की कृपा के बिना परिवार
का कोई भी शुभ कार्य पूर्ण नहीं हो सकता।
विवाह के समय कुलदेवी को चौथा
निमंत्रण भेजा जाता है ताकि वे वर-वधू को अपना आशीर्वाद दें और उनके जीवन में
सुख-शांति बनी रहे। विवाह से पहले परिवार के लोग कुलदेवी के मंदिर में जाकर विशेष
पूजा-अर्चना करते हैं और उन्हें विवाह का निमंत्रण देते हैं।
पाँचवाँ
निमंत्रण – पितरों को (पूर्वजों को)
भारतीय संस्कृति में पूर्वजों
(पितरों) का स्थान देवताओं के समान माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि पूर्वजों का
आशीर्वाद लिए बिना कोई भी शुभ कार्य सफल नहीं होता। इसलिए विवाह के समय उन्हें
पाँचवाँ निमंत्रण भेजा जाता है।
पितरों को आमंत्रित करने के लिए
विशेष पूजा की जाती है और उन्हें श्रद्धा के साथ जल अर्पित किया जाता है। यह
विश्वास किया जाता है कि पूर्वजों का आशीर्वाद नवविवाहित जोड़े को सफलता और खुशहाल
जीवन प्रदान करता है।
छठा
निमंत्रण – मामा (मातुल) को
हिंदू विवाह परंपरा में मामा (माँ के
भाई) का विशेष स्थान होता है। शादी के कई रीति-रिवाजों में मामा महत्वपूर्ण भूमिका
निभाते हैं, जैसे कन्यादान,
हल्दी, और बारात के स्वागत में उनकी अहम
भागीदारी होती है।
इसलिए, विवाह का छठा निमंत्रण मामा को दिया जाता है।
भारतीय समाज में मामा को बेटी के दूसरे पिता के रूप में माना जाता है, और उनके आशीर्वाद के बिना विवाह अधूरा रहता है।
तो इस प्रकार से भारतीय विवाह केवल
सामाजिक और पारिवारिक आयोजन नहीं है, बल्कि
यह एक धार्मिक और आध्यात्मिक परंपरा भी है। विवाह के निमंत्रण को केवल एक
औपचारिकता नहीं, बल्कि एक आस्था और परंपरा के रूप में देखा
जाता है।
पहला निमंत्रण – भगवान गणेश को (बाधा दूर करने और शुभता के लिए)
दूसरा निमंत्रण – भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को (समृद्धि और
वैवाहिक सुख के लिए)
तीसरा निमंत्रण – भगवान हनुमान को (नकारात्मक शक्तियों से रक्षा के
लिए)
चौथा निमंत्रण – कुलदेवी या कुलदेवता को (परिवार की परंपरा और
सुरक्षा के लिए)
पाँचवाँ निमंत्रण – पितरों को (पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने के
लिए)
छठा निमंत्रण – मामा को (वैवाहिक रस्मों और कन्यादान के लिए)
इनके बाद ही परिवार के अन्य सदस्य, मित्र, रिश्तेदार और समाज के
अन्य प्रतिष्ठित लोगों को विवाह का निमंत्रण दिया जाता है। यह परंपरा दर्शाती है
कि भारतीय संस्कृति में विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि और परिवार के आशीर्वाद का पर्व है।
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